"उन्नीस / आह्वान / परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़'" के अवतरणों में अंतर
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कलम लिख दो कहानी तुम कि पत्थर बन गया पानी
चाहे धरा पर सैंकड़ों नदियों लहू की धार की निकलें
मगर जब तक हृदय यह हार को स्वीकार करता है नहीं
तब तक कभी वह काल से भी हार सकता है नहीं
विश्व भर चाहे उसी को बोटियों पर एक दिन मचले
मगर झुक जायगा उस शव के आगे शर विजेता का
अमर है शीश का दानी
कलम लिख दो...
इतिहास के पन्ने गवाही दो तुम्हीं कि हार किसकी जीत किसकी
हारे मगर ऐसा न की खुद हार बनकर शत्रु के आगे
दया की भीख चरणों पर चढ़ा मस्तक नहीं माँगे
पुरू और सिकंदर में कहो की हार किसकी जीत किसकी
छा गई किसके हृदय पर किसके मनोबल की निशानी
कलम लिख दो...
शोक से बैठा अशोक महान बोधि वृक्ष के नीचे
शस्त्र देकर बोल दो कुछ देश बाँकी हैं अभी भी जीतने को
हे आर्य! ले चीवर पहन गेरु चले क्यों माँगने को
भाइयों के रक्त से रंजित सिंहासन रह गया सूना सजा भर
वाह री ऐसी कलिंग कुमारियाँ मर गई लिकिन
हृदय पर शान्ति लिखकर
पिघल कर देखा विन्ध्याचल शिखर, कैलाश
का भी बन गया पानी
कलम लिख दो…