भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सत्ताईस / आह्वान / परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़' |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:27, 3 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण
तुम कुल दीप चलो
बार-बार आती पुकार यह
भारतीय ही रहे हार सह
तुम भारत के वीर कौन तुमसे बोलेगा
कौन है जो तेरे आगे अपना मुँह खोलेगा
तुम्हीं भोर के बाल अरुण रवि, गगन दीप्त कर दो
जिसके कुल का एक सिपाही, शरहद पर मारता है
उसके सात पुश्त ऊपर का पापों से तरते है
स्वर्ग द्वार पर सुमन माल ले देवों की सुकुमारी
तेरे लिये खड़ी हैं पारियाँ सज आरती थाली
मर कर भी तुम अमर शहीदों इस जग में जस ले लो