भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रागिनी / परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़' |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:54, 3 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण
हौले बोलो दीवारें सुनती हैं
जिंदगी की साँस सरगम
के स्वर उखड़े नहीं
नक्कार खाने में
जो तूती बोलती है
कुम्हलाने लगते हैं फूल
जीवन के सहज सुंदर
प्रात: जो तोड़े गये
देवता के शीश पर जाने
चढ़ेगे कब
या मिलेंगे खाक में
यह कौन जाने!
जिन्दगी के रूप की रानी
झील सी आँखों की
चाहता हूँ अंक में बाँधू
गहराई में आँखे डालता हूँ
वह मछलियों-सी छिटक कर
झील के जल के अटल में
बैठती है
….बांसुरी के छिद्र में फंस
रागिनी है गा रही
कह रही है
स्वप्प्न था वह
स्वप्न का संसार
होता बहुत सुंदर
पर स्वप्न के बिरवे
को मिट्टी में जमाने
के लिये
बाहों में पौरुष और
मन कामना तो चाहिये