भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"छ: / रागिनी / परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़' |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

15:57, 3 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

चाँदनी मुझको डराने लग गई क्यों
नाँच पनघट पर, नदी तट पर
छाँह में हिल मुस्कुराने लग गई क्यों
रात चुपके उतर नभ से
कान में सट पूछ सबसे
चौतरफा मेरे विखरने लग गई क्यों
दौड़ कर आने लगा जब छाँह में
घेर कर बैठी हमें क्यों राह में
बात उर की पूछने फिर लग गई क्यों
दर्द की हर परत को क्यों तोड़ डालूँ
जान कर मधु क्षत्र में क्यों हाथ डालूँ
हर कहानी भृंग शूली सी चुभोने लग गई क्यों
बैठता हूँ जब बीरान मशान में
चैन आती है तभी कुछ जान में
आज सोई याद फिर से जग गई क्यों