भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सात / रागिनी / परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़' |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:57, 3 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण
अली कैसे तुम से कह दूँ अपने अमन की वे बातें
सुधियाँ दौड़ी आती हैं
इन नैनों के कोरों पर
छल-छल उतर जाती है
मृदु पलकों के छोरों पर
लिखने बैठूँ तो शब्द जाल
बिलबिला होठ में जाते
ओठों के कम्पन की भाषा
तुम काश! समझ पाते
सुधि जगा कैसे काटूँ जीवन की रातें
हर रात सितारे डूबे
हर सुबह फूल निकले हैं
मेरे उच्छवासों के शबनम
सब पर मजबूर ढलें हैं
तुम बिरहानल की लपटों का
संताप सहन करने की
हिम्मत कर लो या ठान
लो उससे लड़ने की
आ तब मैं तुम्हें सुनाऊँ, जीवन की वे अघाते
अली कैसे तुमसे कह दूँ अपने मन की वे बातें