"जनशिक्षा और पदाधिकारी / नंदेश निर्मल" के अवतरणों में अंतर
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पदाधिकारी जब अच्छे हों
जन-कल्याण सुलभ होता है
तब कागज की नैया चढ़ कर
कोई लक्ष्य नहीं मारता है।
पदाधिकारी जब अच्छे हों
जन-कल्याण सुलभ होता है।
आज खगड़िया की जनशिक्षा
तम से लड़ने निकल पड़ी है
हर पंचायत का विद्यालय
अनुपम सा भारत गढ़ता है।
पदाधिकारी जब अच्छे हों
जन-कल्याण सुलभ होता है।
कर्मवीर अपने मुखिया हैं
कुर्सी उनसे मुखर हुई है
जब चौकस अगवाई है तो
चहूँदिश चेतन ही दिखता है
पदाधिकारी जब अच्छे हों
जन-कल्याण सुलभ होता है।
राह सजाना, उसे सीचना
हरित रहे यह बात सोचना
सौ कन्धा हो साथ चले तो
मंगलमय सुर वह रचता है।
पदाधिकारी जब अच्छे हों
जन-कल्याण सुलभ होता है।
शिक्षित बनने में अभिमत हों
हमें आज यह तय करना है
हाथ-हाथ में हो मशाल जब
कभी नहीं सूरज ढलता है।