भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बचपन / नंदेश निर्मल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदेश निर्मल |अनुवादक= |संग्रह=चल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

17:45, 3 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

बचपन की पूजा करो, ये ओ है भगवान
बसते इसमें कृष्ण हैं, यही बसे श्री राम
यहीं बसे श्री राम, आप भी पूजा कर लो
अर्पण कर अनुराग, पुष्प की वर्षा कर दो
धूल जायगा मैल, जरा तू कर ले वन्दन
जैसी भी हो चाह, पूर्ण करता है बचपन

पर्वत को पानी करे, ऐसा यह विज्ञान
कर दे काया-कल्प जो, यह है वह वरदान
यह है वह वरदान, सागर की झोली भर दे
चाँद सितारे तोड़, रात को दिन में भर दे
यह है वैसा दीप, बुझा दे किसकी जुर्रत
बच्चे के हर पाँव, अटल है जैसे पर्वत।

पर दिनकर की तेजता, और सागर सा धीर
कौन भरे यह कामना, निकले बादल चीर
निकले बादल चीर, धार को पैना कर दे
समय साध के गीत, मधुर कंठों से गा दे
तपता है जब सोन, निखरता कुन्दन बनकर
आशा के अनुरूप, शोभता वह वसुधा पर।

बचपन की बुनियाद पर, सोचो अपना भोर
सदविचार की ईंट से, बचपन का कल जोड़
बचपन का कल जोड़, देश का सार बनेगा
तूफान में भी अडिग, काल से वह जूझेगा
सब वातायन खोल, करें कल का अभिनंदन
चमक उठेगा भाल, सजेगा जब-जब बचपन।