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18:32, 3 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

बैगा लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

मोर लालू गोदी मा बिराजय,
आँगन गली-खोर खेलय रे। टेक

आठ महना मोर लालू पेट भीतर खेलय।
नौ कहना माँ मोर लालू गोदी माँ बिराजय॥
आँगन गली खोर खेलय रे।

चार महना मा मोर लालू छतिक भारे स लगय ।
नौ महना मा मोर लालू बैठकी सीखय॥
आँगन गली खोर खेलय रे।

एक बैगा महिला के विवाह के बाद बहुत दिनों तक कोई बा- बच्चा नहीं हुआ। उसने मान-मनौती की, तब भी उसकी गोद खाली ही रही। अंत में वह एक बैगा गुनिया के पास गई। गुनिया वेदाई की। उसे खाने के लिये जंगल की जड़ी-बूटी दी। तब उसे नौ महीने में प्रौढ़ावस्था में पुत्र प्राप्त हुआ। उसने उसका नाम ‘लालू’ रखा।

बैगा माँ नवजात शिशु से खेल रही है। कभी वह बच्चे को दोनों हाथों में लेती हैं और कभी छाती से लगाती हैं और कभी गोद में लेती है। ऐसा करके खुशी और प्यार से बच्चे को नचाती है और गीत गाती है।

मेरा लालू बेटा गोद में आ गया है। जब वह बड़ा हो जाएगा तो आँगन और गली में खेलने जाएगा। आठ महीने लालू मेरे पेट में रहा, वहाँ हाथ पैर चलाये। अब नौ महीने बाद मेरा लालू मेरी गोद में आ गया है। अब आठ महीने तक मेरा गोलू पेट के बल चलेगा। और नौ महीने में तो वह बैठने लगेगा। इसी गीत को बच्चे के जन्म के तीन माह बाद ‘बरहों’ के समय बैगा महिलाएं सामूहिक रूप से भी गाती हैं और मिलकर दारू पीती हैं।