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"कलसा गोदोनी / बैगा" के अवतरणों में अंतर

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बैगा लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

तरी नानी नानी नानरी, नानी तरी नानी नाना रे नान ।
तरी नानी नानी नानर नानी, तरी नानी नाना रे नान।
कोने नगर के माजना माती, कोने नगर के कुम्हार। दैया …
कोने नगर के माजना माटी, कोने नगर के कुम्हार।
आँजना गढ़ के माजना माती, कुंजना गढ़ के कुम्हार। दैया॥
आँजना गढ़ के माजना माती, कुंजना गढ़ के कुम्हार।
सबखा तो गढ़बे असाना-तैसाना, मोर नाने माना चित लगाय। दैया
कारी गैयन के गोबरी माँगावय, कलसा के चिन्हे बनाय। दैया
साते सुआसा साते सुआसिन, सोयगने मोर दाई।
कलसा कोन गोदय तोर, नानों यो संगही गूँगची।
को दना रिंगी-रिंगी कलसा गोदाय उउ। दाई
आनो यो संगही लकड़ी को बीजाउ, रिंगी रिंगी कलसा गोदा। दाई
आन यो संगही लोडा को दाना रिंगी रिंगी कलसा गोदाय। दाई
दूल्हाकर बहिन बहोतय मायासुर, कलसा ला य ही आनया,
संग हो मनरूपी ढाने कलसा ला वही गोदाय उउ।
तोर दैया कलसा ला ओही गोदाय तोरे।

शब्दार्थ –माजना माटी=पवित्र जगह की मिट्टी, गढ़बे=गढ़े,असाना-तैसाना=ऐसे-वैसे, चिन्हे= अलंकरण, संगही=सखि/सहेली, रिंगी-रिंगी =धीरे-धीरे, मयासुर=ममतालू।

दुल्हन की माँ कुम्हार की दूकान पर गई और कुम्हार से पूछती है- कुम्हार भाई तुम कहाँ के रहने वाले हो और कहाँ से कलश (घडा) बनाने के मिट्टी लाते हो।

कुम्हार ने कहा- माँ मैं कुंजनगढ़ का रहने वाला हूँ और अंजनीगढ़ से कलश बनाने की मिट्टी लाता हूँ। माँ ने कहा-यह तो अच्छा है। लेकिन मेरे लिए ऐसा वैसा साधारण कलश मत गढ़ना, ऐसा तो औरों के लिए गढ़ना। मेरे घर शुभ विवाह है। अच्छा मन लगाकर सुंदर कलश गढ़ना।

कुम्हार कहता है – हाँ बाई! मैं मन लगाकर ही कलश घढ़कर दूंगा। लेकिन पैसे भी अच्छे लूँगा। दुल्हन की माँ कहती है – भैया अच्छे पैसे दूँगी। तेरा नेग भी दूँगी। दुलहन की माँ कलश लेकर लौटी। सुआसा-सुआसिन और दोसी को बुलाया। एक बाटल दारू और काली गाय का गोबर मंगवाया। पत्तल में लाल सफ़ेद घूगची, ककड़ी खीरा के सूखे बीज, पीली-सफ़ेद मक्का के दाने रखे और लाल मिर्च भी रखी। फिर कहती है – सुआसिन जल्दी से कलश को गोबर आदि से सजाओ। गीत गानेवालियों को माँ ने कहा-तुम गीत गाओ। कलश दूल्हे की बहन ही घर में लाई। सुआसिनों ने कहा- तुम कलश को गोबर की रेखाएँ बनाकर सजाओ। उस पर घूँगची, दाल, ज्वार, मक्का और खीरा के बीज के दानों से अलंकरण करो। ऊपर से मिर्ची के बीज भी लगाओ। कहीं-कहीं लाल मिर्च भी चिपका दो। एक पंक्ति में खीरा के बीज, दूसरी पंक्ति में घूगची और एक लाइन में धान के बीज लगाओ। जिससे कलश सुंदर ढंग से सज जाए। लाल मिर्ची के कारण कलश को किसी की नजर नहीं लगेगी। सुआसिने इसी प्रकार कलश को अलंकृत करती हैं।