भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तेल कुटोनी / बैगा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKLokRachna |भाषा=बैगा |रचनाकार= |संग्रह= }} <poem> तरी नानी नानर,...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

19:37, 3 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

बैगा लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

तरी नानी नानर, नानी तरी नानार नानी।
तरी नानी नानर, नानी तरी नानार नानी।
काहिन काट मुसारी काहिन काट सेंझी। दैया
काहिन काट मुसारी, काहिन काट सेंझी। दैया
खैर काट मुसारी, लोहन काट सेंझी।
खैर काट मुसारी, लोहन काट सेंझी। दैया
खैर काट मुसारी, लोहन काट सेंझी। दैया
बड़े दूल्हा तेल कूटय, झंकारो देय। दैया
बड़े दूल्हा तेल कूटय, झंकारो देय। दैया
तरी नानी तरी नानी नानर रे नान।
नानर नानी अर तरी नानी नानर रे नान।
दादर ऊपर, दादर घानी चलत है रे,
पेड़ों तेलया राई सरसोक तेल॥

शब्दार्थ –मुसारी=मूसल, सेंझी= सेमी का फल, झंकारो=झंकार, घानी= तेल घानी, दादर पहाड़, पेड़ों=निकालना/पेरना/कूटना।

दुल्हन की माँ उसे गोद में बिठाकर जगनी और तितली को सूपे में रखकर उससे कुटवाने का कार्य करवा रही है। तब दुल्हन पूछती है- हे माँ! मूसल किस लकड़ी से बंता है और किस चीज से मूसर की सेमी बनती है। माँ कहती है- बेटा! खैर की लकड़ी से मूसल बंता है और उसमें लगी सेमी लोहे से बनती है। इसी से जगती या तितली को कूटकर तेल निकाला जाता है। माँ आगे कहती है- लो बेटा! अब तुम इसको कूटो और विवाह की रसम का निर्वाह करो। जीवन में बहुत छोटी चीजों का भी उतना ही महत्व है। दुल्हन मूसल पकड़कर तेल कूटती है। उसके कूटने से उसके हाथ के गहने और मूसल के ऊपर लगे घूघरू झन-झन की आवाज करते हैं,इसी तरह जगनी, सरसों, रमतिला को कूटा जाता है।