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"धंधा पढ़ोनी और छोडोनी गीत / बैगा" के अवतरणों में अंतर

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19:40, 3 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

बैगा लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

तरी नानी नानर नानी, तारी नानारे नान।
तरी नानी नानर नानी, तारी नाना रे नान।
जाम पाकय जम्नी दाई, बहड़ा पाकय नीम।
चार पैर के मिर्गा, अठारा कोडी सींग।
एहू धंधा जान बरथिगा, तबै खाबी भात।

शब्दार्थ - पाकय= पक गई, मिर्गा= मुर्गा, कोडी=एक कोडी बीस के बराबर, एहू=इस, धंधा=पहेली, बरथिया=बाराती, तबै=तब

बारात जब दुल्हन के गाँव पहुँच जाती है। पहुँचते ही सबसे पहले जनवासा दिया जाता है। यानि बारतियों और दूल्हे को किसी अच्छे घर में ठहराया जाता है। सबको पानी पिलाया जाता है। इसके बाद दुल्हन के माता-पिता सुआसा-सुआसिन दोसी एक बाटल दारू, नारियल, अगरबत्ती कंडे की आग और गाने वाली महिलाएं एक दौरी (मटकी) में भात, बाल्टी में दाल, पानी से भरा लोटा, दतून, दीप प्रज्ज्वलित कलश लिये बरातियों के पास आते हैं। जोहार (रामरामी) करके समधी-समधन से मिला भेंटी होती है। तब गीत गाने वाली महिलाएँ धंधा-पढ़ोनी और छोडोनी गीत गाती हैं।

गीत में कहती हैं- हे दाई! जामुन पक गए हैं। बहेड़ा भी पक गया है। नीम पर निम्बोली लग गई हैं। ऐसे पके पकाये मौसम में इस ‘धंधा’ पहेली का उत्तर दीजिए।

चार पैर के मुर्गा के अठारह कोडी (360) सींग हैं। बाराती इस पहेली का उत्तर देंगे, तभी सब बाराती भोजन करेंगे। यदि बहुत देर तक बराती उत्तर नहीं दे पाते हैं, तो एक बोतल दारू और पिलाई जाती है।

पहेली का उत्तर ‘सेही’ जानवर है, जिसके पीठ पर अनेक तीर जैसे काँटे होते हैं। अपने बचाव में सेही इन्हीं तीरों को चलाकर अपनी रक्षा करती हैं। सेही के तीरों (काँटों) के वार से शेर तक डर भाग जाता है। कोई न कोई बाराती इस अबूझ पहेली को बूझने में समर्थ हो ही जाता है और सबको भोजन नसीब हो जाता है। वास्तव में यह बरातियों की बूद्धि परीक्षा की ही रस्म है। इसके कारण समधियों से थोड़ी मज़ाक भी हो जाती है।