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बैगा लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

तरी नानी नानी नार रे, नानी तरी नानी नाना रे नान।
दूध-दूध माँ गोड़े धोबायबे, घीवय मा पाव परवारबे।
कोने बंदाबे हथियार रे,
घोरिया कोने बन्दावे श्रगार।
कैय दिना पूजही हथिया रे घोरिया,
कैय दिना पूजहीं श्रंगार।
तरी नानी नानी ना रे, नानी तरी नानी नाना रे नान।
दूध-दूध मान गोड़े धोबायबे, घीवय मा पाव परवारबे।

शब्दार्थ- गोड़े=पैर, धीवय=घी, हथिया=हाथी, घोरिया=घोडा, कैय=कितने, पूजही=पूरेंगे/रहेंगे।
 
दुल्हन जब अपने माता-पिता से विदाई के समय आशीर्वाद लेने जाती है- तब दुल्हन कहती है- हे माँ-पिता! आज तुम मेरे पैर पानी से मत धोना। आज तुम मेरे पैर दूध और घी से धोना। तुम आज मुझे आशीर्वाद या विदागी क्या दोगे? माँ कहती है – बेटी! तुम्हें मैं क्या विदाई दूँगी। तुझे मैं एक हाथी और एक बड़ा घोडा बिदागी (विदाई) में दूँगी। उन पर सारा क्षृंगार (सजावट की सामग्री ) तुम्हारे पिता देंगे। बेटी कहती है- माँ! ये हाथी-घोडा मुझे कितने दिन साथ देंगे या ये कब तक मेरे साथ रहेंगे।

तब माँ कहती- तुम्हारा कहना ठीक है। एक चीज मैं और देना चाहती हूँ। मेरा पहनने का सारा क्षृगार सोने-चाँदी के आभूषण वस्त्रादी सब मैं तुझे देना चाहती हूँ। बेटी ने कहा- ये भी कितने दिन साथ देंगे? तब माँ कहती है- बेटी! तू चिंता मत कर, हाथी-घोड़े जब तक हैं, तब तक तो तेरे साथ रहेंगे। यह क्षृंगार (सुहाग) तेरे सब दिन साथ रहेगा। इससे बढ़कर हमारा आशीर्वाद तुम्हारे साथ हमेशा रहेगा।