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"हाथी पड़घौनी / बैगा" के अवतरणों में अंतर

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बैगा लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कोने बनावै हथिया रे घोरिया, कोने चढे असेवार दाई
कोने बनावै हथिया रे घोरिया, कोने चढ़े असेवार।
बैरी बनावै हथिया रे घोरिया, दादा चढ़े असेवार दाई 2
कोने बनावै हथ घोरिया सम्हारों, कोने हाथे तलेवार दाई 2
धीरे-धीरे लड़बी रे दादा, पाँवक पनही बिछल झै जाय।

शब्दार्थ – हथिया=हाथी, कोने=कौन, असेवार=असवार, डेरीना= बाये, जौनी= दायें, लड़बी=लड़ना, पनही=जूते।

बारात आने के बाद हाथ पड़घौनी की रीत है, जिसमें तीन खटिया कम्बल, रस्सी आदि से हाथी बनाया जाता है। इस हाथी को चार लोग कंधे पर उठाकर चलते हैं। जिसके ऊपर दुल्हन के भाई को बैठाया जाता है। जिसे हाथी पर नचाया जाता है। तब यह पड़घौनी गीत गाया जाता है। गीत में दुल्हन पूछती है- हे दाई! इस हाथी को किसने बनाया है। इस पर कौन बैठा है। किसने सवारी की है। किसी दुश्मन ने इस हाथी को बनाया है। मेरा भाई इस पर सवार हुआ है।

हे भाई! तुम कौन से हाथ से हाथी सम्हालोगे और कौन से हाथ में तलवार रखोगे। भाई कहता है- बहन मैं बाँयें हाथ से हाथी पकडूँगा और दायें हाथ में तलवार पकडूँगा। दुल्हन कहती है। देख भाई! जरा धीरे से लड़ना। तुम्हारे पैर का जूता कहीं फिसल न जाय।