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"मृत्यु गीत / बैगा" के अवतरणों में अंतर

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19:49, 3 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

बैगा लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

हाय तै तो मार दारे राम,
हेड के कटार बैरी राम दारे। टेक
दाई रोवे डादेसा, भाई रोवे मुडेसा।
बेटी तो रोवे छतिया कतार।
हेड के कतार बैरी मार दारे।
हाय मैं तो मार दारे राम,
हेड के कतार बैरी।
केला तोरे आगी देंथय, केला तोर माटी।
के ला तोरे गंगाजी सिराँय।
हेड के कटार बैरी मार दारे।
हाय तै तो मार दारे राम,
हेड के कटार बैरी।
धर्मी चोला ला आगी देथस, पापी चोला ला माटी।
भागे पुरूसला गंगाजी सिराँय।
हेड़ के कटार बैरी मार दारे ।
हाय तै तो मार दारे राम,
हेड के कतार बैरी।

हे राम। आज हम पर बहुत भारी विपत्ति आ गई है। आज घर का मुखिया मृत्यु के मुख में चला गया है। उस पुरुष की पत्नी पति के पैर छू-छू कर रोती है और कहती है- हे पतिदेव! तुम मुझे छोड़कर कहाँ जा रहे हो।
बेटा मृत पिता के सिर को छू-छूकर रोता है और कहता है-हे पिता! तुम छोड़कर कहाँ चले गये। हम तुम्हारे बिना कैसे जी सकते हैं। बेटी पिता की छाती पर अपना सिर पटक-पटक कर रोटी है और कहती है- हे पिता! तुम मुझे छोडकर कहाँ चले गये हो। मुझे कुछ बताया भी नहीं। जाते समय मैं तुमको कुछ बोल भी नहीं पायी। मुझे आशीर्वाद भी नहीं दे पाये।

बेटा पूछता है- माँ किसको आग में जलाते हैं, किसको मिट्टी देते हैं और किसको गंगाजी ले जाते हैं।

माँ कहती है- बेटा! मैं इतना ही जानती हूँ की जो अच्छे कर्म करके पुण्य (धर्म) कमाते हैं। असली धार्मिक जीवन जीते हैं। उसी को अग्नि में जलाते हैं। जो पाप कर्म करके पाप कमाते हैं, जो पापी कहलाते हैं, उसे धरती के अंदर गड़ा खोदकर मिट्टी में गढ़ाते हैं। और भाग्यवान पुरुष की अस्थियाँ गंगाजी ले जाई जाती है। उसे ‘फूल सिराना’ कहा जाता है।

आग-दाग या मृतक को दफनाने के बाद सब लोग घर आते हैं। शरीर पर तेल लगाते हैं। सगे-संबंधी घर जाते हैं और एक बाटल दारू दाल-चावल लाते हैं। मृतक परिवार को दारू पिलाते हैं और खाना खिलाते हैं। तब यह गीत गाते हैं।