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बैगा लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

तरी रे हनी तरी, तरी रे हनी तरी सुआ रे
तरी रे हनी तरी, तरी रे हनी तरी सुआ रे
राछत –पूछत हमु आयन भूली, कुकरा भूकी देय सुआ रे
निकाल पटलिन आँगा माँ, दर्शन देखो हमार सुआ रे
कैसे के निकालव आंगना, कोरा हैं बालका पूत सुआ रे
जोगी मगोरा निशेदिना, हमें देखो बारह है आन सुआ रे
पटेल बैठय सोने माँची, पाटोलिन बैठय ओसार सुआ रे
झफ़ीया माँ हौवय सुआ बेली, शोई देखो माझे द्वार सुआ रे
हाथे हर्दी धरी-धरी माथे मा टीका देय सुआ रे
हरदी के टीका धूमे-धूमे, घीवे के टीका देय सुआ रे

शब्दार्थ – राछत= रास्ता, पूछत=पूछते, हमु आयन=हम आये, कुकरा-कुकरा=कुत्ते, भूकी=भूकन, कोरा=नवजात/छोटा, जोगी=साधु-सन्यासी, मगेता=माँगने आना/भीख माँगना, झपिया=झाँपी।

बैगा महिलाएँ पूस माह की पूर्णिमा के दिन एक गाँव से दूसरे गाँव नाचते जाती हैं। यह नृत्य प्राय: रात्रि में देर तक छटा है। सबसे पहले महिलाएँ पटेल के घर जाती। तब महिलाएँ यह सुआ गीत गाकर नृत्य करती हैं। गीत सुआ को संबोधित होते हैं।

गीत में महिलाएँ कहती हैं- हम तुम्हारा घर का पता पूछते हुए यहा आये हैं। हमको देखकर तुम्हारे गाँव के कुत्ते भूकने लगे। पटेलिन जरा निकलकर आँगन में आओ। हमारे दर्शन करो। हमको देखो तो सही। पटेलिन घर के अंदर से ही कहती है। बहिन! मैं कैसे निकलकर आँगन में आ सकती हूँ। मेरी गोदी में छोटा सा बच्चा है।

साधु सन्यासी तो माँगने घर के सामने रोज ही आता है। लेकिन हम लोग तो साल भर में एक ही बार आते हैं। पटेल-पटेलिन तुम आँगन तक नहीं आ सकती हो तो कम से कम ओसारी (बरामदे) तक तो आ जाओ। ओसारी में पटेल सोने की माची पर और तू चाँदी की माची पर बैठो। हम तुम्हारे द्वार दशहरा गीत गाने और नाचने आए हैं। पटेलिन अंदर से कहती है- झाँपी (बाँस की टोकनी) में मिट्टी का सुआ और बेलफूल रखे हैं। मैं उन्हीं की सेवा में लगी हुई हूँ। ऐसा न हो की उस पर किसी की नजर लग जाय, कोई उसे चुराकर न ले जाय। पटेलिन घर से बाहर निकली और हाथ में हल्दी और आरती में जलता दिया। रखकर सबको माथे पर हल्दी का टीका लगाया। रीति अनुसार स्वागत किया। इस पर महिलाओं ने कहा- अरे पटेलिन! हल्दी का टीका तो घूमिल हो जायेगा। हमें घी का टीका लगाओ।