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भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

ऊँचो माळो डगमाळ, टोंगल्या बूडन्ती ज्वार
कााचओ सूत की मेहताब देव की गोफण बणाई,
राधा राणी होर्या टोवण जाई।
हरम्या-धरम्या का होर्या उड़ी जाजो,
ने पानी को खाजो सगळो खेत।।

-सिंगाजी महाराज का महल ऊँचा है। कच्चे सूत की देव की मेहताब तथा गोफण
बनाई है। ज्वार घुटनों के ऊपर तक बड़ी है। राधा रानी तोते उड़ाने जाती हैं। धर्मात्मा
का खेत छोड़ देना और पापी का खेत चुग लेना।