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भील लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
ऊँचो माळो रे कमल भाई रे,
टोंगल्यो बूडन्ती ज्वार।।
काचा रे सूत की कमल भाई की गोफण,
सुशीला होर्या टोवण जाई।।
हरमी-धरमी का होर्या उड़ी जाजो,
न पापी को खाजो सगळो खेत।।
-गीत गाने वाली ने स्वयं के भाई के नाम से गाया है कि भाई का महल ऊँचा है, ज्वार घुटने के ऊपर है। कच्चे सूत की भाई की गोफन बनाई हुई है। सुशीला भाभी तोते उड़ाने जाती है। धरमी का खेत छोड़कर पापी का सारा खेत चुग लेना।