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"सावां गीत / 3 / भील" के अवतरणों में अंतर

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भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

ऊँचा मां भाले रे ढेड्या सरग मारी भाणिंगलो!
नेचो मां भाले रे ढेड्या सरग मारी भाणिंगलो!
खाटले मां बसेरे ढेड्या सरग मारी भाणिंगलो!
उटले मां बसेरे ढेड्या सरग मारी भाणिंगलो!

-सावां लाने वालों को बधाकर (स्वागत कर) घर में ले जाते हैं फिर औरतें गीत
गाती हैं। सावां लाने वालो को कहती हैं कि तुम ऊपर आसमान की ओर मत
देखो- सरग (आसमान) हमारा भानजा लगता है। धरती, खटिया और चबूतरे पर
मत बैठो, ये भानेज-भानजी लगते हैं।