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भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

हांव ते काठी विछण गयली व झारी वणझारी।
हांव ते काठी विछण गयली व झारी वणझारी।
काला विछु ने चढकायो व झारी वणझारी।
काला विछु ने पटकायो व झारी वणझारी।
मिं ते काठी विछण गयली व कालो विछु ने चटकायो।
मारो जेठ उतारे मारी जेठाणी कुरकाय व झारी वणझारी।
मारो जेठ उतारे मारी जेठाणी कुरकाय व झारी वणझारी।
मारो देवर उतारे मारी देवराणी कुरकाय व झारी वणझारी।
मारो देवर उतारे मारी देवराणी कुरकाय व झारी वणझारी।
मारो सेसरो उतारे मारी सासूजी कुरकाय व झारी वणझारी।
मारो सेसरो उतारे मारी सासूजी कुरकाय व झारी वणझारी।
मायो सायबो उतारे विछु सेड़ो सेड़ो उतरे व झारी वणझारी।
मायो सायबो उतारे विछु सेड़ो सेड़ो उतरे व झारी वणझारी।
मिं ते काठी विछण गयली, काला विछु ने चटकायो व झारी वणझारी॥

- मैं तो काठी चुनने को गई थी। काले बिच्छू ने काटा। मेरा जेठ उतारे, मेरी जेठानी नाराज होती है। मेरा देवर उतारे, मेरी देवरानी नाराज होती है। मेरे ससुर उतारे, मेरी सास नाराज होती है। मेरे स्वामी उतारते हैं, तो बिच्छू सर-सर उतरता है।