भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"निहाली गीत / 3 / भील" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKLokRachna |भाषा=भील |रचनाकार= |संग्रह= }} <poem> तारो माटि कालगो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:38, 5 सितम्बर 2018 का अवतरण
भील लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
तारो माटि कालगो आवे वो, बांगड़ भड़के झुणि वो।
बयड़ि आतर ढुलगि वाजिवो, बांगड़ भड़के झुणि वो।
तारो माटि कालगो आवे वो, बांगड़ भड़के झुणि वो।
तारो माटि दीत्यो आवे वो, रेसमि भड़के झुणि वो।
तारो माटि जुवान्स्यो आवे वो, धनि भड़के झुणि वो।
बयड़ी आतर ढुलगि वाजीवो, बांगड़ भड़के झुणि वो।
- बारात में महिलाएँ गीत गाती हैं-
टेकरी की ओट में ढोलगी बजी है। बाँगड (समधन) चमक मत जाना। तेरा खसम कौन आ रहा है? बाँगड़ चकमना मत। तेरा खसम दीत्या आ रहा है, रेशमी चमकना मत। तेरा खसम जुवानसिंह आ रहा है, धनी चमकना मत।