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भील लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
ताड़े जाता ते ताड़ि पीता रे लोल।
याहिणिके लावता ते वात करता रे लोल।
ताड़े जाता ते ताड़ि पीता रे लोल।
कलाल्या मा जाता ते दारू पीता रे लोल।
हलवी मा जाता ते गुंड्या खाता रे लोल।
- ताड़ के पास जाते ही ताड़ी पीते। समधन का लाते तो उसके साथ बात करते। कलाल के यहाँ जाते तो दारू पीते। हलवाई के यहाँ जाते तो भजिये खाते।