भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कन्यादान गीत / 3 / भील" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('v{{KKLokRachna |भाषा=भील |रचनाकार= |संग्रह= }} <poem> बेनि भाई आवे ति...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:05, 5 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण
vभील लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
बेनि भाई आवे तिं, अड़ि जाजी वो।
भाइ पइस्या आले तिं, छुड़ि देजी वो।
बेनि काको आवे तिं, अड़ि जाजी वो।
काको बुकड़ि आले तिं, छुड़ि देजी वो।
बेनि बणवि आवे तिं, अड़ि जाजी वो।
बणवि करोंदि आले तिं, छुड़ि देजी वो।
बेनि बहणिस् आवे तिं, अड़ि जाजी वो।
बहिण छल्लो आले तिं, छुड़ि देजी वो।
-वधू पक्ष वाले कन्यादान करते हैं और दुल्हन से गीत में कहा गया है कि- हे बनी! भाई कन्यादान के लिए आए तब उसे पकड़ लेना, जब रुपये दे तब छोड़ना। काका आएँ तक उन्हें पकड़ लेना, बकरी दें तब छोड़ना। बहनोई आएँ तो उन्हें भी पकड़ लेना, करोंदी दें तब छोड़ना। बहन आए तो उसे भी पकड़ लेना, छल्ला दें तब छोड़ना।