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भील लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
सासु ने काइ काइ रांद्यो जवांयला।
आवस्या नो भोजन रांद्यो जवांयला।
खाइ ते सलो-वलो करे जवांयला।
गुल ने घिंव ते नारब्यो जवांयला।
खासे तिं घणि मुझा आवसे जवांयला।
-गीत में कहा गया है- जवाँईजी! सास ने भोजन में क्या-क्या बनाया है? उत्तर में कहा है- सिवैयाँ बनाई हैं, खाएँ तो ‘सलो-वलो’ (इधर-उधर) होती हैं। उसमें गुड़-घी डाला है, खाएँगे तब खूब मजा आएगा।