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16:07, 5 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

वधू पक्ष- सुदो रहिन् जुवारजी रे लाड़ा,
निंगवाल्या ना देउस आकरा,
सुदो रहिन् जुवार जी।
सुदि रहिन् जुवारजी वो बेनी,
जयो-वयो फगाइ देजी।

वर पक्ष- सुदि रहिन् जुवारजी वो लाड़ी,
देउस हामरा आकरा।
सुदो रहिन् जुवारजी रे लाड़ा,
जयो-वयो फगाइ देजी।

आँगन में विदाई के समय वर-वधू के हाथों में चावल रखकर उस पर पानी डालते हैं। दोनों एक साथ चावल धरती माता को चढ़ाकर हाथ जोड़ते हैं।

- वधू पक्ष की महिलाएँ वर को कहती हैं कि सीधा रहकर अर्थात् ठीक तरह ‘जुवारना’ हमारे देवता बहुत तीखे हैं, नहीं तो नाराज हो जाएँगे। वधू से कहती हैं कि- तू इधर-उधर फेंक देना। वर पक्ष की महिलाएँ वधू से कह रही हैं कि- लाड़ी तू ठीक से ‘जुवारना’ हमारे देवता बहुत तीखे हैं। वर से कहती हैं- तू इधर-उधर फेंक देना।