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"भाँवर गीत / 1 / भील" के अवतरणों में अंतर

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16:10, 5 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

मारो कवचड़ा पर, ढेड्या दासे झुणी।
कवच आजड़ झांजड़ करे, ढेड्या दासे झुणी।
पुर्यो चुली मेकण आयो, पुरयो धड़-धड़ कांपे वो।

- विवाह के दिन फेरे के समय दूल्हे का छोटा भाई दुल्हन के लिए चोली लेकर दुल्हन के घर में जाता है। स्त्रियाँ कहती हैं- ले लड़के! मेरा कवच का घर है, भागना मत। कवच हिलती है तुझे लग जाएगी, भागना मत। वह लड़का जो चोली देने के लिये आया है, थर-थर काँप रहा है।