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"हल्दी गीत / भील" के अवतरणों में अंतर
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भील लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
तेल लेवो बनी तारो सरगयो तेल।
तुखे मसे वो गोरी बनी पीठी रोलो॥
ऊं डे कुवे नोका दे वड़ो, काला लाड़ा कूचोल से।
तू ते नाहिले वो, नाहिले वो, गोरी बनी।
नवला पोतल्या पांधरले वो, गोरी बनी।
- गीत गाते हुए लाड़ी (दुल्हन) को हल्दी का उबटन लगाया जा रहा है। लाड़ी को प्रसन्न करने के लिए इस गीत में कहा गया है कि- तुझे तेल-रोलां मल रहे हैं। काले लाड़े को गहरे कुएँ का कीचड़ मलेंगे। हल्दी मलने के बाद स्नानकर लाड़ी को नये कपड़े पहनने के लिए आग्रह किया गया है।