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भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

टेक- सीता हो राम सुमर लेणा, भजि लेवो भगवान,
सीता हो राम सुमर लेणा।

चौक-1 सपना की रे संपत भइ, बांधिया गजराज।
भंवर भयो उठ जागीया, तेरा वही रे हवाल।
सीता हो राम...

चौक-2 वाये सोनू नहिं नीबजे, मोती लाग्या डालम डाल।
भाग बिना केम पावसो, तपस्या बिन राज।
सीता हो राम...

चौक-3 राजा दसरथ की अयोध्या है, नंदि सरजु का तीर,
जा घर बैठी राणी कौशल्या, जिनका जाया रघुवरी।
सीता हो राम...

चौक-4 बिना रे पंख का सोरठा, उड़ि गया रे अकास,
रंग रूप वाहां को कछु नहिं, भूखा न प्यास।
सीता हो राम...

छाप- झिणि झिणि नोबत वाजसे, वाजे गरू रबार,
सेन भगत की रे वीणती, राखो चरण आधार,
सीता हो राम...

- सीता-राम का स्मरण करें अर्थात् भगवान का भजन कर लें।

यह संसार क्षणिक स्वप्न के समान है। स्वप्न में मनुष्य मालदार हो जाता है, उसके घर हाथी झूलने लगते हैं। भोर होने पर फिर वही हाल। हे मानव! भजन कर ले। सोना बोने से उगता नहीं, न ही डाली पर मोती लगते हैं। भाग्य के बना कुछ नहीं मिलेगा। तपस्या के बिना राज्य भी नहीं मिलता है। सरयू नदी के तट पर राजा दशरथ
की अयोधया है, जिनके पास कौशिल्या रानी हैं, उनके पुत्र रघुवीर हैं। उनका भजन कर लो। यह जीव बिना पंख का पक्षी है, उसका रंग रूप कुछ नहीं है। न भूख लगती है न प्यास। हे मानव! सीता-राम की भक्ति कर ले, तो पार उतर जायेगा।