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"होली गीत / 1 / भील" के अवतरणों में अंतर

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16:36, 5 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

होळी आज न काल, होळी चली रे लोल॥
होळी को मोटो तिवार, होळी चली रे लोल॥
पड़ी को मोटो तिवार, होळी चली रे लोल॥
पांचम को मोटो तिवार, होळी चली रे लोल॥
सांतव की सीतळा पुजाई, होळी चली रे लोल॥

- होली आज-कल है। होली का त्यौहार समाप्त होने चला है। होली का त्यौहार बड़ा है। पंचमी और सप्तमी को रंग से होली खेलते हैं। पूर्णिमा के दूसरे दिन धुलेन्डी पर होली की धूम मचती है। सप्तमी के दिन शीतला पूजन और छठ के दिन बना हुआ भोजन करते हैं। सप्तमी का दिन होली का अन्तिम दिन होता है।