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भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

टेक- बिराणी जानकी हर लाए बिराणी।

चौक-1 कहत मंदोदरी सुण पिया रावण कोण बुद्धि उपजाई।
उनकी जानकी तुम हर लाए।
वो तपसी दोनों भाई, पिया तुने एक न मानी,
जानकी हर लाए बिराणी।

चौक-2 लिया जात की ओछी रे बुद्धि, उनकी करव बड़ाई,
दूर मण्डल से पकड़ बुलाऊँ, हे राम लखन दोनों भाई
पिया तुने एक न मानी।
जानकी हर लायो बिराणी।

चौक-3 मेघनाथ सरीका पुत्र हमारा, कुम्भकरण सा भाई
लंका हमारी बनी है सोने की।
वो सात समन्दर नव खाई, पिया तुने एक न मानी।
जानकी हर लाए बिराणी।

चौक-4 हनुमान सरीका है सेवक जिनका, लक्ष्मण है छोटा भाई,
जलती आगन में कूद पड़ेंगे, तो कोट गिणें न वो खाई,
पिया तुने एक न मानी।
जानकी हर लाए बिराणी।

छाप- रावण मार राम घर आए, घर-घर होत बधाई।
माता कौशल्या करत आरती, तो राज विभीषण पाई,
पिया तुने एक न मानी,
जानकी हर लाए बिराणी।

- मंदोदरी अपने पति रावण से कह रही है कि- पिया सुनो! आपको किसने ऐसी बुद्धि दी कि पराई सीता का हरण कर ले आए? वे दोनों तपस्वी दो भाई हैं, तूने मेरा कहा एक न माना।

रावण मंदोदरी से कहता है कि- स्त्री जाति की बुद्धि बहुत कम होती है, तू उन तपस्वियों की प्रशंसा कर रही है। मैं दूर कहीं से भी उन्हे पकड़कर बुलाऊँ। मंदोदरी कहती है- वे दोनों तपस्वी राम और लक्ष्मण दोनों भाई हैं, पिया तूने कहा एक न माना।

मंदोदरी कहती है- मेघनाथ के समान हमारा पुत्र है और कुम्भकरण के समान आपका भाई है। हमारी लंका सोने की बनी हुई है। इसके आसपास सात समुद्र और नौ खाइयाँ हैं, जो इसे सुरक्षा प्रदान करते हैं। हे पिया! आपने मेरी एक न मानी, पराई सीता को हर लाये।

हनुमान के समान राम का सेवक है और उनका छोटा भाई लक्ष्मण है। यह दोनों महाबली जलती आग में कूद पड़ेंगे। दोनों महाबलवान हैं, लंका के कोट और खाइयाँ उनके आगे कुछ काम न आयेंगी। हे पिया! आपने एक न माना।

राम ने लंका पर चढ़ाई की, कुटुम्ब और सेना सहित रावण को मारा और राम घर आये। घर-घर बधाई हो रही है, खुशियाँ मनाई जा रही है। माता कौशल्या भगवान राम की आरती कर रही हैं। लंका का राज्य भगवान राम ने विभीषण को दिया। पिया! आपने एक न मानी और पराई जानकी का हरण कर ले आये।