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"फाग गीत / 13 / भील" के अवतरणों में अंतर

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भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बदिंल्या घड़इदो देवर, घर में थारो सारो रे॥
दाम तो परण्या रा लाग्या, नाव थारो रे कि देवर म्हारो रे॥
कि देवर म्हारो रे, हरिया रूमाल वाळो रे, कि देवर म्हारो रे॥

- एक भाभी लाड़ से देवर से कहती है कि- घर में मुझे तेरा सहारा है, मुझे बिन्दी घड़वा दें। ब्याह में पैसे तो मेरे पति के लगे, किन्तु नाम तेरा है। मेरा देवर हरे रूमाल वाला है। (इसका दूसरा अर्थ भी लगाया जा सकता है।)