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भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बागा मा आवी उतरयु
साजनीकु छोरी छाने बाने
जोई लेसु रे ऽऽऽ।
हतमा लई लेसु लाकेड़ी रे छोरी
गाय ना बाने जोई लेसु रे ऽऽऽ
जोई लेसू रे, मन मोई लेसु रे ऽऽऽ
दोई दल लड़ानी बाल्यो कर लेसु रे ऽऽऽ।
बागा मा आवी उतरयु
साजनीकु छोरी छाने बाने
जोई लेसु रे ऽऽऽ।
काख्यां मा लइ लेसु टोपे लू
छोरी छांणा ने बाने जोई लेसुर रे
बागा मा आवी उतरयु
साजनीकु छोरी छाने बाने
जोई लेसु रे ऽऽऽ।
हाथा मा लई लेसु दाँतेड़,
छोरी सारा ना बाने
जोई लेसु रे ऽऽऽ
जोई लेसु रे ऽऽऽ मन मोई लेसु रे ऽऽऽ
बागा मा आवी उतरयू
साजनी कु छोरी...।

- मैं बागीचे में ठहरा हूँ सखी! किस बहाने से मैं साजन से मिलूँ? तू मुझे बता, देख लूँगी। छोरी! हाथ में तू लकड़ी ले लेना और गाय चराने के बहाने से मिल लेना। सखी! ठीक है। मैं मिल लूँगी और उसका मन मोह लूँगी। इस तरह दोनों मिलकर हम दिल की बातें कर लेंगे। मैं देख लूँगी। सखी! बगल में टोपला रख लूँगी और कंडे बीनने के बहाने से मैं उससे मिल लूँगी। मैं देख लूँगी। मैं बगीचे उतरा हूँ। सखी! मैं अपने हाथ में दाँतेड़ा ले लूँगी और चारा काटने के बहाने से मैं उससे मिल लूँगी और इस तरह मैं उसका मन मोह लूँगी।