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भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

मारो रंगीलो सामलियोऽऽऽ हाँ गावलड़ी सरावेऽऽऽ
मारो रंगीलो...।
माथा तो मुगट वाला बहु सोभे राज
कानुड़ा मा कुन्दल झलके न मन मोहे राज
गला मा हीरलावालू हार बहु सोभे राज
मुख पे मोरली बागने मन मोहे राज
मारो रंगीलो सामलियोऽऽऽ हाँ गावलड़ी सरावेऽऽऽ
मारो रंगीलो...।
खाँदे तो कामली वाला ने बहु सोभे राज
केड़ कन्दोरो लटके ने मन मोहे राज
पगे तो घुँगरू लटकेनो मन मोहे राज
मारो रंगीलो सामलियोऽऽऽ हाँ गावलड़ी सरावेऽऽऽ
मारो रंगीलो...।

- मेरा मस्त प्रियतम गायें चराता है। उसके सिर पर मुकुट शोभित हो रहा है। उसके कानों में कुण्डल चमक रहे हैं और गले में हीरों का हार बहुत ही शोभायान हो रहा है। अपने मुँह पर बाँसुरी रखकर वह बजाता रहता है और मन को लुभाता रहता है। उसके कंधो पर कामली शोभित है और कमर में कन्दौरा लटकर रहा है, पैरों में घुँघरू। ये सभी मन को लुभा रहे हैं।