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भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

ऊँचो खयर्यो खिरपालो वो, झिरे-मिरे-झिरे-मिरे।
ऊँचो खयर्यो खिरपालो वो, झिरे-मिरे-झिरे-मिरे।
आयणी के देसूँ परदेसी वो, झिरे-मिरे-झिरे-मिरे।
आयणी के देसूँ परदेसी वो, झिरे-मिरे-झिरे-मिरे।
किसन भाइ आणो लेणे जासे वो, झिरे-मिरे-झिरे-मिरे।
किसन भाइ आणो लेणे जासे वो, झिरे-मिरे-झिरे-मिरे।
उटड़े वसाड़िन् लावसे वो, झिरे-मिरे-झिरे-मिरे।
उटड़े वसाड़िन् लावसे वो, झिरे-मिरे-झिरे-मिरे।
नेंदी-नेंदी व मारा नखल्या गुया, हुजु निहिं आयो मारो भाइ।
नेंदी-नेंदी व मारा नखल्या गुया, हुजु निहिं आयो मारो भाइ।
ऊँचो खयर्यो खिरपालो वो, झिरे-मिरे-झिरे-मिरे।
ऊँचो खयर्यो खिरपालो वो, झिरे-मिरे-झिरे-मिरे।

- यह गीत फसल की निंदाई-गुड़ाई के समय गाया जाता है। खेर वृक्ष की छाल खुरदरी है, झिर-मिर पानी बरसे। समधिन को परेदस में देंगे। किशनभाई गौना लेने जायेगा। ऊँट पर बिठाकर लायेगा। निंदाई कर-करके मेरे नाखून घिस गये हैं, मेरा भाई नहीं आया।