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भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

हातेम् आरस्यो पिपले व पाय मा झांजुर झलके व।
हातेम् आरस्यो पिपले व पाय मा झांजुर झलके व।
जाणे वाली पछि फिरे वो, जाणे वाली पछि फिरे वो।
सुबुन बुंद हात वा गुजरी, सुबुन बुंद हात वो गुजरी।
फिरि-फिरि नेंद वो, खेतेम् रहित्यु खड़ कमली भोजाइ।
कहयुं मिं खेतेम् रहिग्यू खड़ वो कमली भोजाइ।
कहयुं मिं खेतेम् रहिग्यू खड़ वो कमली भोजाइ।
फिरि-फिरि नेंद वो, खेतेम् रहित्यु खड़ कमली भोजाइ।

- हाथ में दर्पण चमक रहा है, पैर में पायजेब चमक रहे हैं। ओ जाने वाली! पीछे मुड़, जाने वाली पीछे मुड़। सभी के हाथों में गूजरी हैं। फिर-फिर कर घास उखाड़, खेत में खरपतवार रह गया है वो कमली भावज। फिर-फिर कर घास उखाड़ खेत में खरपतवार रह गया है वो रूमा भावज। फिर-फिर कर घास उखाड़ खेत में खरपतवार
रह गया है वो राली भावज। इस प्रकार से निंदाई कर रहे लोगों के नाम ले-लेकर गीत आगे बढ़ता जाता है।