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17:05, 5 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण

भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

चार कुटड़ी ने चार दिवल्या, झग मलोजी।
दिवल्यो लगाड़ुं ती एकली वो नणद बाई।
दलनों दलों ती एकली वो नणद बाई।
पाणिलों भरों ती एकली वो नणद बाई।

- भाभी, ननद से कहती है कि कोठरी के चार खूँट में चार दीपक हैं। घर में दीया
लगाऊँ, पानी भरने जाऊँ अकेली रहती हँू, मेरे साथ में कोई नहीं है।