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"डोहा गीत / 4 / भील" के अवतरणों में अंतर
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भील लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
डोहो मांड्यो कि दयणी, दिवल्यो मांगे तेल।
डोहो पान यातली, डोहो सुरभरयो रमसे।
डोहो तेल पर खेले ने।
डोहो घिंव पर खेले।
डोहो केरेल्यो रे लोल।
- दीपावली के बाद डोहा खेलते हैं। एक मिट्टी के कलश या मटकी में कई छेद कर देते हैं। उसके अन्दर घी या तेल भरकर एक दीपक रखते हैं, उसे डोहा कहते हैं।
एक लड़की डोहे को सिर पर रखती है साथ में लड़के-लड़कियाँ रहते हैं, ढोल बजाकर नाचते हैं और गीत गाते हैं। डोहे वाली पार्टी गाँव में प्रत्येक घर जाकर गीत गाती है, घर के लोग उनको अनाज देते हैं। उसकी गोठ (पार्टी) करते हैं। एक गाँव के लोग दूसरे गाँव में भी डोहा खेलने जाते हैं।