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"मृत्यु गीत / 5 / भील" के अवतरणों में अंतर

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भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

राम भजो रे, भगवान मारो मन काई म लागी रयो।
राम भजो रे, भगवान मारो मन काई म लागी रयो।
राम भजो रे, भगवान राम भजो रे।
राम भजो रे, भगवान राम भजो रे।
भगवान मारो मन बेटा-बहु म रमी रयो रे राम।
भगवान मारो मन बेटा-बहु म रमी रयो रे राम।
भगवान मारो मन कई मा लागी रयो।
राम भजो रे, भगवान राम भजो रे।
राम भजो रे, भगवान राम भजो रे।
भगवान मारो मन खेती-वाड़ी म लगी रयो।
भगवान मारो मन खेती-वाड़ी म लगी रयो।
राम भजो रे, भगवान राम भजो रे।
मारो मन छोरी जवाँई म लगी रयो॥
राम भजो रे, भगवान राम भजो रे।
मारा मन कइ मा लगी रयो॥
राम भजो रे, भगवान राम भजो रे।
मारो मन नाती-पोती म लगी रयो॥
राम भजो रे, भगवान राम भजो रे।
मारो मन कइ मा लगी रयो॥
राम भजो रे, भगवान राम भजो रे।
मारो मन घर-बार म लगी रयो॥
राम भजो रे, भगवान राम भजो रे।

- मानव के अन्तिम क्षणों में जब केवल श्वाँस बाकी रहती है, उस समय की दशा
का इस मृत्यु गीत में वर्णन किया गया है।

राम का भजन करो। हे भगवान! मेरा मन किसमें लगा हुआ है जिससे मेरा जीव अटका
है। मरणासन्न दशा वाले मनुष्य से कहलाया गया है कि मेरा गन अपने पुत्रो और बहुओं
में लगा हुआ है। इस सभी का मोह मेरी आत्मा को रोके हुए है। आगे कहा गया है कि
मेरा मन खेती-बाड़ी के मोह में अटका हुआ है। मेरी खेती-बाड़ी इतनी बड़ी और अच्छी
है। यह संसार मोह माया है इसमें जीव अटका है। लड़की और जवाँई के मोह में मेरा
जीव अटका है। नाती और पोती का मोह भी रोके हुए हैं। घर-बार का मोह भी
रुकावट डालता है।

गीत का मुख्य उद्देश्य यह है कि माया मोह के सांसारिक बंधनों में मनुष्य पड़ा
रहता है। (राम का भजन करना चाहिए जिससे मनुष्य को मुक्ति प्राप्त होती है।)
लोगों को भगवान के भजन की ओर प्रेरित करने के प्रयास में ये उदाहरण दिये हैं।