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"मृत्यु गीत / 14 / भील" के अवतरणों में अंतर

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भील लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पवाँ फाटियो ने सुरिमल उगिया राम।
पवाँ फाटियो ने सुरिमल उगिया राम॥
सास नणद क कइ क मीराबाई लात नहिं मारना राम।
सास नणद क कइ क मीराबाई लात नहिं मारना राम॥
उनको नाके गदड़ी को अवतार व, मीरा बाई राम।
उनको नाके गदड़ी को अवतार व, मीरा बाई राम॥
गदड़ी तो रूखड़े लुलाइ रा, मीराबाई राम।
गदड़ी तो रूखड़े लुलाइ रा, मीराबाई राम॥
सासू नणद क जूठो भोजन नि देणू राम, मीरा बाई राम।
सासू नणद क जूठो भोजन नि देणू राम, मीरा बाई राम॥
वको नाखसे मांजरी को अवतार राम, मीरा बाई राम।
वको नाखसे मांजरी को अवतार राम, मीरा बाई राम॥
मांजरी ते घेर-घेर दूध दहि उष्टो चाटे राम, मीरा बाई राम।
मांजरी ते घेर-घेर दूध दहि उष्टो चाटे राम, मीरा बाई राम॥
मीरा बाई कहे राम भजो रे राम।
आपणी देराणी-जेठाणी का कारा नहिं करनु रे राम।
वको नाखसे कुतरी नो अवतार व राम।
कुतरी बणिन घरे-घर भुखसे रे राम।
घरवाळा कथि छिपिन नि खाणूं राम।
वको नाखसे वागळी नो अवतार राम।
वागळी ते औंधी झाड़े लटके रे राम।
जिना मुहंडे खाय पलाज मुहंडे हागे रे राम।
मीरा बाई कहे राम भजो रे राम॥

- इस गीत में महिलाओं ने महिलाओं से कहा है कि भगवान राम का भजन करो
उसी में कल्याण है। सवेरा हुआ और सूर्योदय हुआ। राम का भजन करो। अपनी
सास व ननद को लात नहीं मारना, नहीं तो भगवान गधी का अवतार देगा, गधी
बनकर घूरे पर लोटोगी। सास-ननद को जूठा भोजन न खिलाना, नहीं तो भगवान
बिल्ली का अवतार देगा, बिल्ली बनकर घर-घर के दूध-दही के बर्तन व जूठा चाटना
पड़ेगा। अपनी देरानी-जेठानी की बुराई नहीं करना, नहीं तो भगवान कुत्ती का अवतार
देगा और घर-घर भूँकोगी। अपने पति से छिपकर नहीं खाना, नहीं तो भगवान चमगादड़
का अवतार देगा, दिन में नहीं दिखेगा और पेड़ पर औंधी लटकी रहोगी, एक ही मुँह
से खाओगी और उसी से मल त्याग करोगी। मीरबाई का कहना है कि राम का भजन करो।