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राजस्थानी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
कुंकू भरियो चोपड़ो, मोतीयां भरियो थाल।
बीराजी बेगा भात भरण न आइज्यो म्हारा राज।
बीराजी बेगा आइज्यो भावज न लाइज्यो साथ।
बीराजी प्यारा भाई भतीजा न लाइज्यो साथ।
थे बीरा उमराव घणा सगला में सिरदार।
बीराजी म्हारा मान बढ़ावण आया म्हारा राज।
चमचम चमके चूंदड़ी ओढ़ावण आया म्हारा राज।
मायरो लाया धूसू म्हारो हरख्यो सो परिवार।
भावज म्हारी गीता रो शोर मचायो म्हारा राज।
बेनड़ हरकी ह धणी भर मोतियन रो थाल।
टीको काढ़े चाव सू कर सोला सिणगार।
बीराजी म्हारा हंस हंस नेग चुकाव म्हारा राज।