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राजस्थानी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
केसरिया बन्ना बागों में आया रे, केसरिया बन्ना बागों में आया रे
आवो री सज धज कर आवो री,
सखियन सब आयो री, माला पहनावो री
केसरिया बन्ना बागों में आया रे।।
ये मेरे हाथ फूलों की डाली, ये मेरे हाथ फूलों की डाली
मैं जो मालन बन कर आई, बागों में ऐसी छाई
केसरिया बन्ना बागों में आया रे
ये मेरे हाथ चौमुखी दियना, ये मेरे हाथ चौमुखी दियना
मैं तो ज्योति बन कर आई, महलों में ऐसी छाई
केसरिया बन्ना बागों में आया रे
ये मेरे हाथ पानों के बीड़े, ये मेरे हाथ पानों के बीड़े,
मैं जो लाली बन कर आई, रंगों में ऐसी छाई
केसरिया बन्ना बागों में आया रे,
केसरिया बन्ना बागों में आया रे
आवो री सज धजकर आवो री,
सखियन सब आवो री, माला पहनावो री
केसरिया बन्ना बागों में आया रे।