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राजस्थानी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
थांनै काजलियो बना लूं, थांनै नैना में रमा लूं
बन्ना पलकां में बन्द कर राखलूंगी।
बन्ना पलकां मंे नींद कइयां आवली
म्हारी पलकां पालनियां झुलावली।
ओ म्हारा नैना से दूर कियां रे ओला जी।
थानै चन्द्र हार बना लूं, म्हारै हिवड़ां में छिपा लूं।
बन्ना हिया में बंद कर राखूंली, चुनरी में बांधकर राखूंगी
बांकी चुनरी लहर लहराती-2
बन्ना प्राणां सू प्रीत जगाऊंली।