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राजस्थानी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
म्हारा आंगण जावतरी रो रुख म्हारा पिवजी, सनजारे आंगण एलची जी,
पाकण लाग्यो, जावतरी रो रूख म्हारा पिवजी, महकण लागी एलची।
बैठा म्हारा पिवजी राय दुलीचो ढाल तो समधी से खेले सारसा जी,
रमिया रमिया सारोड़ी राज म्हारा पिवजी, कुण हार्या कुण जीताया जी।
हार्या हार्या बाई रा बाबा म्हारी गोरी कोटण समधी जीतियाजी,
हार्या होता पिवजी, हसियांरी जोड़ तो म्हारी राज कंवर क्यू हारियो।
डाबा मांयला गहणा क्यूंनी हारिया म्हारा पिवजी, राज कंवर क्यूं हारिया।
पहिला हारिया तीन भवन रा नाथ म्हारी गौरी पाछे म्हे ही हारियाजी।
पहली हारिया थारा ही बाप म्हारी गौरी पाछे म्हे ही हारिया जी।