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राजस्थानी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
ब्याई बैठ्या पाटड़ले, पेरावणी मांगजी,
मांगे ब्यायण घागरो, ब्यान घणोरे सुवावे,
जूवास् भर्यो घागरो वानं तोड़ तोड़ खावे।
सुणतो ब्याई जी म्हारी बिनती, काहू बन नहीं आयो।
धोली जवारी रो खिचड़ो जिंदवालर लिज्यो सुता केरे कपड़ा पाटूकर लिज्यो।
म्हारी बाई... लाडली, निभायकर लिज्यो,
बेगीसोवा मोडी उठेला, हेला मती करज्यो,
बार जाव मोडी आवेला, हेला मती करज्यो।
म्हारे हात कंगणरी जोडीजी, बाईन दूध पायर मोटी करीजी।
बाईन हेता मती करज्यो जी,
बाई न सिरावण न शीरो जी बाई न दोपारीन लाडूजी।
ब्याई न ब्यारी जलेबी जी, बाईन हेला मती करज्यो जी।