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1)
खून अगर लाल हो
हिंसा का आनंद आता है
खून अगर काला हो
लाश के साथ संभोग करने की वितृष्णा
पैदा होती है अंदर
सफ़ेद नैपकिन
आमंत्रित करता है हिंसा के लिए
काला नैपकिन
हत्या करता है आनंद की उन्मादकता का
दुनिया
दो धुर्वों में बात गई है
सफ़ेद नैपकिन
काला नैपकिन।
2)
तुम्हारे लिए
यह भी
सुख को उपभोग करने की
एक उन्मादक विधि है
हमारी यंत्रणाए
और
हमारा खून
दर्द से
दुखता हुआ हमारा शरीर
रक्त छोड़ता हुआ हमारा अंग और
अंधेरे में विस्थापित
एक काला नैपकिन
तुम्हारी परपीडक मानसिकता को
परितृप्त करता है
हमारी यह लज्जा
साधारण आत्मविश्वास में तब्दील नहीं हो पाती
दुनिया में इतने आंदोलनों के बावजूद
आंदोलनों का इतिहास
वहीं से शुरू होता है
जहाँ से फूटती है रक्त की धार
हमारे रक्त छोड़ते अंगों से डरनेवाला पुरुष
हमारे रक्त रहश्यों को जानने के बाद
लांक्षित करता है हमें
धमनियों में बहनेवाले रक्त को अपना नाम देता है
भूल जाता है वह
वीर्य का रंग सफ़ेद और लिजलिजा होता है
उसे उसी खून से पिता बनती है हम
जो लगा है इस काले नैपकिन में
उड़ाती हूँ इसे मैं इतिहास की किताब में
इंडिया गेट की मशाल में
अमेरिका के व्हाइट हाउस में
ब्राज़ील के फुटबाल के मैदान में
मंदिर मस्जिद गिरजाघर में
एक काला खून छूटा हुआ नैपकिन
इतना सब होने के बावजूद
अभी भी
दुनिया दो धुर्वों में बटी है
सफ़ेद नैपकिन
काला नैपकिन।
3)
पेड़ों पर टांग दिये हैं नैपकिन
गदर में पेड़ों पर टांग दिये सिपाही की तरह
अली गली सभी जगह, पूरे कैम्पस में
रातों रात चिपका दिये गए नैपकिन
जैसे होली दिवाली की सरकारी शुभकामनाओं के पोस्टरों से
भर दिया जाता हैं शहर
अपने हक की लड़ाई लड़ रहीं हैं हम
संवैधानिक दायरे में रहकर
सरकार और समाज
हमें आतंकवादी नजरों से देखते हैं
हमें अराजक कहते हैं
पेड़ों पर टंगे नैपकिनों को
असंवैधानिक लड़ाई कहते हैं
एक साधारण-सी क्रिया
एक पुरुष की जगह
एक स्त्री घोषित करती हैं हमें
एक स्त्री होने के घोषणे के खिलाफ
सिंदूर और मंगलसूत्र की जगह
सर पर चिपका लिया हैं नैपकिन
गले में पहन लिया हैं नैपकिन
पुरुषों का सम्मान करती हैं हम
हम नैपकिन महिलाएँ।
4)
माँ ऋतु स्त्राव कहती है
बड़े नियम कानून से रहती है
पिता माँ की गिरफ्त में रहते है
दुनियाँ के सारे पुरुष
गुप्तांग भेद कर रक्त बहाने को
विरोचित भाव से बतलाते हैं
स्वेच्छा से बहते हुये रक्त से डरते है
रक्त के इतिहास को गंदला करना चाहते हैं
सफ़ेद लिजलिजे से हमें बांधना
इस खून से हमारे अंदर कुछ भी नहीं बदलता
कहीं कोई ऋतु परिवर्तन नहीं होता
बस शर्म को जबर्दस्ती लाद दिया जाता है
हमारे देह के घोड़े पर
एक सफ़ेद नैपकिन बनाकर
इसमें शामिल है माँ भी
दीदी और दादी भी
भाभी चाची मामी मौसी नानी बुआ भी
मैं अपनी बच्ची को शर्म नहीं
नैपकिन दूँगी
सफ़ेद नैपकिन
काला नैपकिन।
5)
माँ ने ऐसी शिक्षा दी है
न चाहते हुये भी
अपने को मानती हूँ अपवित्र
पैरों से बहती है खून की नदी
होती हूँ पवित्र
तीन दिन चार दिन
पाँच दिन त्वचा रहती है खुश्क
फेसबुक पर लगती हूँ
लाल नैपकिन का फोटो
होती हूँ खुश
सफ़ेद नैपकिन को कहती हूँ
टा टा बाय-बाय फुस्स।