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"ऐसे ही पड़ी हूँ / संजय तिवारी" के अवतरणों में अंतर

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जब नहीं था
युग का अस्तित्व
नहीं था काल का प्रवाह
नहीं थे चाँद सितारे
और उनके परिवार
नहीं था संसार
मई तो थी तब भी
हूँ अब भी
और रहूँगी
अस्तित्व के अस्तित्व से इतर
जैसी थी
जैसी हूँ
वैसी ही रहूँगी
मतझे बसाया नहीं है
किसी मनुष्य ने बनाया नहीं है
अस्तित्व से पूर्व लायी गयी हूँ
अवधपुरी हूँ
मैं स्वयं आयी नहीं हूँ
मेरे बाद शुरू होते हैं तुम्हारे युग
मेरे बाद आता है तुम्हारा दर्शन
मेरे बाद आती हैं तुम्हारी श्रुतियाँ
स्मृतियाँ
पुराण
इतिहास
साहित्य
और
सबके बाद तुम
बहुत छिछले हो
राह से बिछले हो
कैसे जान सकोगे
मेरा मूल
नहीं देख सकोगे
मेरे ह्रदय का शूल
मनुओ की माता भी हूँ
राम की जाता भी हूँ
युगो की धराता भी हूँ
काल की प्रजाता भी हूँ
अस्तित्वपूर्व से अस्तित्व तक की
एकमात्रा ज्ञाता भी हूँ
मैं अयोध्या हूँ
ऐसे ही पड़ी हूँ
ब्रह्माण्ड
सृष्टि
समय
इनसे पूर्व भी थी
आज भी खड़ी हूँ।