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"रक्षाबंधन का त्यौहार / निशान्त जैन" के अवतरणों में अंतर
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गीत खुशी के गाता आया,
रक्षाबंधन का त्यौहार
मौसम भी मदमस्त हुआ है,
रोना-धोना पस्त हुआ है,
संग-साथ लाया है अपने
सावन की मधुरिमा बहार!
भाई-बहन का प्यार अनूठा,
अमर सदा जो कभी न टूटा,
उसी नेह का उसी प्रेम का,
झूम-झूम करता संचार।
सपने पूरे साल सँजोए,
पर भैया थे खोए-खोए,
देखा तो राखी वाले दिन,
झोली भर लाए उपहार।
हो खटास कितनी भी मन में
सब मिट जाए बस कुछ क्षण में,
तोड़ के सारी दुःख की गाँठें,
जोड़े मन से मन के तार।
राखी न धागा न कतरन,
सच्चे प्यार का सच्चा बंधन,
नींव पे जिसकी टिका हुआ है,
रिश्तों का स्वर्णिम संसार।
हिंदू-मुसलिम-सिक्ख-ईसाई
सब बहनों को प्यारे भाई,
मिलकर आएँ, सभी मनाएँ,
होगा तभी पर्व साकार।