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"कठपुतली / मंजूषा मन" के अवतरणों में अंतर
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होंठो पर मुस्कान सजा
वो नाचती है
घूम घूमकर हाथ पैर हिलाकर...
खूब तालियाँ बजतीं
बच्चे ख़ुशी से झूम जाते
बड़े भी खुश हो जाते..
शो खत्म होते ही
फिर समेट कर रख दी जाती
बक्से में।
बक्से के भीतर
वो बतियाती हैं
एक दूसरे को सराहतीं हैं
कहतीं हैं... सखि!!
अब हम फिर बाहर निकाले जायेंगे
अगले शो के दिन,
हमारी डोर फिर थामी जायेगी
हमें नचाया जायेगा।
फिर शो के बाद
इसी बक्से में हमें संभाला जायेगा
जब तक हमसे मिलता रहेगा इन्हें
कोई भी लाभ
तब तक सहेजे जायेंगे हम...
और पुरानी होने पर
तोड़कर डोर
डाल दिया जायेगा
कूड़े के डिब्बे में।
पुरे जीवन में
कभी नहीं आएगी
हमारी डोर
हमारे हाथों में...
हम कठपुतलियाँ हैं।