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क्यों बृथा दोष पिया को लगावत।
तो हित चन्द्रमुखी चातक बनि परसन कूँ नित चाहत॥
हैं बहु नारि रसीली ब्रज में वातो तुम कोइ चाहत।
तो हित वृन्दावन राधे सब सखियन रास दिखावत॥
तेरो रूप हिये में धारत नित निरखत सुख पावत।
विष्णुकुँवरि राधे तव चरननि हाथ जोड़ि सिर नावत॥