भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"गुमसुम रहती हो / राजेश गोयल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेश गोयल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGe...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:47, 19 सितम्बर 2018 के समय का अवतरण
चुपचाप बैठी हो, गुमसुम रहती हो।
याद में तुम किसके, आहें भरती हो॥
दिल दीवाना ये,
तेरे प्यार में रहता है।
याद में अब तेरी,
दिल पागल रहता है॥
जब प्यार करे कोई, तुम आहें भरती हो।
चुपचाप बेठी हो, गुमसुम रहती हो।
बातें किसके दिल की,
मन बुनता रहता है।
सूनी सूनी रातें,
दिन सूना रहता है॥
राहें तकती किसकी, सुनसान रहती हो।
चुपचाप बेठी हो, गुमसुम रहती हो।
फूलों से रंग चुरा,
भंवरा गुनगुन करता।
खुश्बू तेरी लेकर,
हर फूल खिला करता॥
चांदी से बाल तेरे, सोने सी लगती हो।
चुपचाप बेठी हो, गुमसुम रहती हो।