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इन्होंने अपने समय मे सामयिक पत्रों में समस्या-पूर्त्तियाँ करने में विशेष भाग लिया। इनके सम्बन्ध में एक रोचक प्रसंग उल्लेख-योग्य है। उन्हीं दिनों बलदेवप्रसाद अवस्थी नाम के एक कवि अबध के राजा प्रताप बहादुरसिंह के यहाँ राजकवि के रूप में रहते थे। इनकी भी समस्या-पूर्त्तियाँ बड़ी टकसाली होती थीं। चन्द्रकलाजी पर बलदेव जी की कवित्त्व-शक्ति का बड़ा प्रभाव पड़ा और उन्होंने उनसे पत्र-व्यवहार करके बूँदी आने के लिए निमंत्रित किया। पत्र के साथ उन्होंने निम्नलिखित सवैया भी लिख भेजी थी:-

दीन-दयाल दया कै मिलो,
दरसे बिनु बीतत हैं समै सोचन।
सुद्ध सतोगुण ही के सने ते,
बिसंकित सूल सनेह सकोचन॥
तोरि दियो तरु धीर-कगार के,
ह्वै सरिता मनो बारि विमोचन।
चन्द्रकला के बने बलदेवजी,
बावरे से महा लालची लोचन॥